Thursday, July 3, 2008

गांधी के भाषण की दुर्लभ रिकॉर्डिंग

उपाध्यायबीबीसी संवाददाता, वाशिंगटन


महात्मा गांधी के पोते को इस भाषण का पता चला
माना जाता है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने राजनीतिक जीवन में शायद दो ही बार अंग्रेज़ी में भाषण दिया था.
पहला 1930 में धार्मिक मामलों से जुड़ा एक भाषण और दूसरा उनकी मौत से कुछ ही महीने पहले 2 अप्रैल 1947 में दिया गया भाषण.
ज़्यादातर लोगों को यही पता था कि इस भाषण की रिकॉर्डिंग नहीं हुई थी लेकिन अब उस भाषण की रिकॉर्डिंग अमरीका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में मिली है. लगभग साठ सालों के बाद.
बापू के इस भाषण की रिकॉर्डिंग चार एलपी रिकॉर्ड्स में मौजूद है और इसे साठ सालों तक सहेज कर रखनेवाले हैं वाशिंगटन के नेशनल प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष जॉन क्रॉसगोव.
और जॉन क्रॉसगोव को ये रिकॉर्डिंग मिली पत्रकार ऑल्फ़्रेड वैग से जिन्होंने 1947 में इस भाषण को रिकॉर्ड किया था.
अचानक मिली रिकॉर्डिंग
लेकिन साठ सालों तक इस बारे में किसी और को पता नहीं था और ये बात सामने तब आई जब अप्रैल में महात्मा गांधी के पोते और उनकी जीवनी लिखने वाले राजमोहन गांधी वाशिंगटन आए थे और उनकी मुलाक़ात क्रॉसगोव से हुई.
और तब जाकर क्रॉसगोव को भी अदाज़ा लगा कि ये रिकॉर्डिंग कितनी अनमोल है क्योंकि अंग्रेज़ी में उनका बस एक और भाषण उनकी आवाज़ में उपलब्ध था.
इस संबंध में सबसे पहले ख़बर देने वाले वाशिंगटन पोस्ट अख़बार ने राजमोहन गांधी के हवाले से कहा है कि ये बापू की ही आवाज़ है और ये भाषण एशिया के बड़े नेताओं के एक सम्मेलन में दिया गया था.
वैसे रिचर्ड ऐटनबरो की फ़िल्म गांधी देखकर बहुत लोगों को अंदाज़ा रहा है कि गांधी अपने भाषण अंग्रेज़ी में देते थे लेकिन राजमोहन गांधी ने बताया कि वो ज़्यादातर हिंदी या गुजराती में ही भाषण देते थे.
मैं आपकी तालियाँ नहीं आपके दिलों को जीतना चाहता हूँ और अगर जो मैं कह रहा हूँ उस पर आप सब के दिल एकसाथ ताली बजाएँ तो शायद मेरा काम पूरा होगा."

महात्मा गांधी
उनका पहला अंग्रेज़ी भाषण 1930 में इंग्लैंड में रिकॉर्ड हुआ था.
राजमोहन गांधी ने ये भी बताया है कि बापू के बहुत कम भाषणों की रिकॉर्डिंग हुई है क्योंकि एक तो वो अँग्रेज़ शासन के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे, दूसरा उस समय टेक्नॉलॉजी भी नहीं थी कि आसानी से रिकॉर्डिंग की जा सके.
इस भाषण की एक और ख़ास बात है कि ये गांधी के उस प्रस्ताव के ठीक एक दिन बाद दिया गया था जिसमें उन्होंने भारत को बंटवारे से बचाने के लिए मुहम्मद अली जिन्ना को पूरे देश का प्रधानमंत्री बनाने की पेशकश की थी.
इस भाषण में उन्होंने देश में चल रहे दंगों की बात की है और सुनने वाले नेताओं से कहा है कि वो ये छवि लेकर नहीं बल्कि शांति का संदेश लेकर भारत से लौटें.
एक बार जब लोगों ने तालियाँ बजानी शुरू कीं, तो उन्होंने बीच में ही उन्हें यह कहकर रोका कि 'इससे मेरा भाषण भी रूकेगा और आपके समझने में भी मुश्किल आएगी.'
उन्होंने कहा, "मैं आपकी तालियाँ नहीं आपके दिलों को जीतना चाहता हूँ और अगर जो मैं कह रहा हूँ उस पर आप सब के दिल एकसाथ ताली बजाएँ तो शायद मेरा काम पूरा होगा."
राजमोहन गांधी ने इस भाषण को एक अनूठे खोज का नाम दिया है और आज इंटरनेट के ज़माने में ये खोज बापू के संदेश को बड़ी आसानी से जीवंत कर रही है और वह भी दुनिया के हर कोने में.



बापू को अनूठी श्रद्धांजलिलंदन में संवादों के माध्यम से गांधी जी के जीवन के अंतिम दिन का मंचन हुआ.



महात्मा के अंतिम शब्दमहात्मा गांधी ने अंतिम सांस लेते वक्त 'हे राम' कहा था या कुछ और...



सर्वश्रेष्ठ अंपायर कौनक्या आप जानना चाहेंगे एक मशहूर कलाकार किसे सर्वश्रेष्ठ अंपायर बता रहा है.


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करार और सरकार के लिए अहम दिन
कच्चे तेल की क़ीमतों में रिकॉर्ड उछाल जारी
भारत के लिए करो या मरो की स्थिति
गांधी के भाषण की दुर्लभ रिकॉर्डिंग


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गांधी के भाषण की दुर्लभ रिकॉर्डिंग

उपाध्यायबीबीसी संवाददाता, वाशिंगटन


महात्मा गांधी के पोते को इस भाषण का पता चला
माना जाता है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने राजनीतिक जीवन में शायद दो ही बार अंग्रेज़ी में भाषण दिया था.
पहला 1930 में धार्मिक मामलों से जुड़ा एक भाषण और दूसरा उनकी मौत से कुछ ही महीने पहले 2 अप्रैल 1947 में दिया गया भाषण.
ज़्यादातर लोगों को यही पता था कि इस भाषण की रिकॉर्डिंग नहीं हुई थी लेकिन अब उस भाषण की रिकॉर्डिंग अमरीका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में मिली है. लगभग साठ सालों के बाद.
बापू के इस भाषण की रिकॉर्डिंग चार एलपी रिकॉर्ड्स में मौजूद है और इसे साठ सालों तक सहेज कर रखनेवाले हैं वाशिंगटन के नेशनल प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष जॉन क्रॉसगोव.
और जॉन क्रॉसगोव को ये रिकॉर्डिंग मिली पत्रकार ऑल्फ़्रेड वैग से जिन्होंने 1947 में इस भाषण को रिकॉर्ड किया था.
अचानक मिली रिकॉर्डिंग
लेकिन साठ सालों तक इस बारे में किसी और को पता नहीं था और ये बात सामने तब आई जब अप्रैल में महात्मा गांधी के पोते और उनकी जीवनी लिखने वाले राजमोहन गांधी वाशिंगटन आए थे और उनकी मुलाक़ात क्रॉसगोव से हुई.
और तब जाकर क्रॉसगोव को भी अदाज़ा लगा कि ये रिकॉर्डिंग कितनी अनमोल है क्योंकि अंग्रेज़ी में उनका बस एक और भाषण उनकी आवाज़ में उपलब्ध था.
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वैसे रिचर्ड ऐटनबरो की फ़िल्म गांधी देखकर बहुत लोगों को अंदाज़ा रहा है कि गांधी अपने भाषण अंग्रेज़ी में देते थे लेकिन राजमोहन गांधी ने बताया कि वो ज़्यादातर हिंदी या गुजराती में ही भाषण देते थे.
मैं आपकी तालियाँ नहीं आपके दिलों को जीतना चाहता हूँ और अगर जो मैं कह रहा हूँ उस पर आप सब के दिल एकसाथ ताली बजाएँ तो शायद मेरा काम पूरा होगा."

महात्मा गांधी
उनका पहला अंग्रेज़ी भाषण 1930 में इंग्लैंड में रिकॉर्ड हुआ था.
राजमोहन गांधी ने ये भी बताया है कि बापू के बहुत कम भाषणों की रिकॉर्डिंग हुई है क्योंकि एक तो वो अँग्रेज़ शासन के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे, दूसरा उस समय टेक्नॉलॉजी भी नहीं थी कि आसानी से रिकॉर्डिंग की जा सके.
इस भाषण की एक और ख़ास बात है कि ये गांधी के उस प्रस्ताव के ठीक एक दिन बाद दिया गया था जिसमें उन्होंने भारत को बंटवारे से बचाने के लिए मुहम्मद अली जिन्ना को पूरे देश का प्रधानमंत्री बनाने की पेशकश की थी.
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उन्होंने कहा, "मैं आपकी तालियाँ नहीं आपके दिलों को जीतना चाहता हूँ और अगर जो मैं कह रहा हूँ उस पर आप सब के दिल एकसाथ ताली बजाएँ तो शायद मेरा काम पूरा होगा."
राजमोहन गांधी ने इस भाषण को एक अनूठे खोज का नाम दिया है और आज इंटरनेट के ज़माने में ये खोज बापू के संदेश को बड़ी आसानी से जीवंत कर रही है और वह भी दुनिया के हर कोने में.



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महात्मा के अंतिम शब्दमहात्मा गांधी ने अंतिम सांस लेते वक्त 'हे राम' कहा था या कुछ और...



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31 जनवरी, 2008 भारत और पड़ोस
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क्या थे महात्मा गांधी के अंतिम शब्द!
29 जनवरी, 2008 भारत और पड़ोस
नस्लवाद के ख़िलाफ़ गांधी सर्वश्रेष्ठ 'अंपायर'
10 जनवरी, 2008 भारत और पड़ोस
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13 जून, 2007 भारत और पड़ोस
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29 जनवरी, 2007 भारत और पड़ोस
सुर्ख़ियो में
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Monday, June 30, 2008

Maoist chief blames Terai parties for delay in govt formation

Maoist chairman Pushpa Kamal Dahal 'Prachanda' on Monday blamed the Terai-based parties of delaying the formation of a new government by obstructing the Constituent Assembly (CA) proceedings.
"The [announcement of] resignation by Prime Minister Girija Prasad Koirala immediately paved way for the formation of a new government, however the process has again been delayed by the obstruction created by the Tarai-based parties," chairman Dahal said speaking to a group of South Korean journalists that reached his residence at Nayabazaar to interview him Monday morning.
Just as it appeared that the deck for a formation of a new Maoist led government had been cleared by Koirala's resignation, the Terai-based parties have obstructed the proceedings of the Constituent Assembly (CA) for a straight three days demanding that the constitution amendment bill tabled in the CA address the issues raised by them.
Chairman Dahal, who is more popular with his nom de guerre Prachanda, also informed that political parties are currently engaged in homework to form the new government in a week's time.
The Maoist strongman also said that immediately after forming a new government under its leadership his party would pursue big projects and come up with attractive programs so that the people would immediately start to "feel the transformation" that has arrived in the country.
In a question about the army-integration, Dahal said that there are plans to cut down the size of both the Maoist People's Liberation Army and Nepal Army which he referred to as a national army.
"There is no need to have more than 50,000 soldiers in the national army," he said, and suggested that the those who are laid off can be put into development works.
The Maoist chairman, who is seemingly eager to head the first democratically elected Maoist government in the world, appears to be a bit cross with the Terai-based parties over the obstruction created by them in the proceedings of the CA.
Although he has said that he supports the Terai parties demand for an autonomous Madhesh state, as per the agreement between the government and United Democratic Madheshi Front, an alliance of major Terai parties like Madheshi Janadhikar Forum, Terai Madhesh Loktantric Party and Sadbhawana Partry, he has publicly expressed his objection to the demand raised by them for declaring the whole of Terai (from Mechi to Mahakali) as a single Madhesh province.
Top Madheshi leaders including MJF's Upendra Yadav and Jay Prakash Prasad Gupta have threatened of a nationwide stir if the government turned down their demand for a single Madhesh province.
However, the indigenous Tharus, who consider themselves Terai's original"son of the soil", have raised objection against the demands of Terai parties for a single province in the Terai belt.
Tharu Welfare Assembly said that the "One Madhesh" demand have been made to convert their land - Tharuhat - into Madhesh and have warned that they might even resort to arm struggle if anybody downplayed their identity and existence.
Chure Bhawar Ekata Party (CBEP) which represents the people of hilly origin in Terai, has also raised objections against the demands for one Madhesh province, saying that it would sow the seed of 'national disintegration'. nepalnews.com ag June 30 08
Related news - Gupta threatens to paralyse the entire country if Madhesi demands are not met
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